आज 23 मार्च है, शहीद दिवस। जिस दिन देश की स्वतंत्रता की बलिवेदी पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया था. उन शहीदों और ऐसे ही अनगिनत बलिदानियों को कोटिशः नमन करते हुए क्रांतिकारियों के प्रति गांधीजी के विचारों को याद करना प्रासंगिक होगा.
12 फरवरी 1925 को 'यंग इंडिया' में गांधीजी द्वारा प्रस्तुत विचारों का सार आपके समक्ष रख रहा हूँ -
"मैं क्रांतिकारियों की वीरता और बलिदान की भावना से इंकार नहीं करता। ... एक निर्दोष व्यक्ति का आत्मबलिदान उन लाखों लोगों के बलिदान से ज्यादा असर पैदा करता है जो दूसरों को मारने की क्रिया में मर जाते हैं.
मैं उनसे धैर्यपूर्वक आग्रह करता हूँ कि वे स्वराज की चिरप्रतीक्षित बाधाओं - चरखों का अपूर्ण प्रचार, हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मनमुटाव और दलित वर्गों के ऊपर अमानवीय प्रतिबन्ध के प्रति अपना समुचित योगदान करें। यह शायद शानदार काम नहीं है, लेकिन इसके लिए आवश्यक गुण सदा महानतम क्रांतिकारियों में विद्यमान होते हैं.
सरफरोशी की तमन्ना से भरकर फांसी के तख्ते पर झूल जाने की अपेक्षा भूखी जनता के बीच उसके साथ-साथ धीरे-धीरे और शानदार न दिखने वाले तरीके से स्वेक्षापूर्वक भुखमरी का शिकार होना हर हालत में ज्यादा वीरतापूर्ण कृत्य है। "
गांधीजी और क्रांतिकारियों के बीच मतभेद के अनावश्यक विवादों में न पड़ते हुए मैं बस यही दोहराना चाहूँगा कि गांधीजी साध्य के साथ साधनों की भी पवित्रता के पक्ष में थे और निश्चित रूप से इसकी अनिवार्यता मौजूदा दौर में और भी शिद्दत से महसूस की जा रही है.