भारत की आत्मा गावों में बसती रही है, मगर आजादी के बाद अर्थव्यवस्था का केन्द्र शहरों को मान विकास के मॉडल को अपनाया गया, जिसने देश की जड़ें खोखली कर दीं। यही कारण है कि आज विश्व के किसी दूसरे कोने में चले एक झोंके से भी हमारी विकास की ईमारत लड़खडाने लगती है।
भारत की आत्मा को आत्मसात करने वाले गांधीजी ने कहा था कि- " अब तक गाँव वालों ने अपने जीवन की बलि दी है ताकि हम नगरवासी जीवित रह सकें। अब उनके जीवन के लिए हमको अपना जीवन देने का समय आ गया है। ... यदि हमें एक स्वाधीन और आत्मसम्मानी राष्ट्र के रूप में जीवित रहना है तो हमें इस आवश्यक त्याग से पीछे नहीं हटना चाहिए। " "भारत गावों से मिलकर बना है, लेकिन हमारे प्रबुद्ध वर्ग ने उनकी उपेछा की है। ... शहरों को चाहिए कि वे गावों की जीवन-पद्धति को अपनाएं और गावों के लिए अपना जीवन दें। "
गांधीजी के विचारों को ही उनकी विरासत मानते हुए ग्रामोत्थान और 'ग्राम स्वराज' की दिशा में हमारा अंशदान ही उस महानात्मा के प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि होगी।