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Thursday, August 27, 2009

मुन्नाभाई और गांधीजी


ब्लॉगजगत से अंशकालिक विराम लेने से पूर्व गांधीजी के विचारों पर जारी चर्चा को एक खुबसूरत मोड़ पर लाकर छोड़ना ही उचित समझता हूँ। क्या कभी हममें से किसी ने सोचा कि मुन्नाभाई एम. बी. बी. एस. जैसी ताजगी भरी, उम्दा और सफल फिल्म बनाकर विधु विनोद चोपडा और राजकुमार हिरानी की जोड़ी ने गांधीजी की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म ही क्यों बनाई ! मुन्नाभाई जैसी साफ़-सुथरी, पूरे परिवार के साथ देखे जा सकने वाली और अत्यंत सफल फिल्में हिंदी सिनेमा में कम ही बनती हैं. ऐसे में इस टीम के समक्ष अपनी सफलता को दोहराना और वो भी बिना किसी समझौते के एक बड़ी चुनौती थी। फिल्म की सफलता से एक हद तक तो समझौता किया जा सकता होगा, मगर इसके स्तर से समझौते की कोई गुंजाईश नहीं रही होगी. ऐसे में इस टीम को गांधीजी की याद का आना स्वाभाविक ही था। गांधीजी आज भी इस देश में एक ऐसा नाम है, जिस पर आम आदमी की काफी श्रद्धा है। गांधीजी के विचारों को आमआदमी तक उसीकी शैली में पहुँचाने में जहाँ यह फिल्म काफी सफल रही, वहीँ इसने गांधीजी को बौद्धिक और बोझिल चर्चाओं से मुक्ति भी दिलाई।
इसी मन्त्र में रहस्य छुपा है फिल्म की सफलता और गांधीजी के विचारों की सार्थकता का। गाँधी विचार को बौद्धिक परिचर्चा की चारदीवारी से बाहर निकाल आमजन तक सरल लहजे में पहुँचाना ही इस देश को नए सिरे से एक सूत्र में पिरोने, वास्तविक भारतप्रेम जागृत करने में सहायक सिद्ध होगा।
आज गांधीजी हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनके मार्ग को सफलतापूर्वक अपना कई लोगों का जीवन बदल देने वाले कई अल्पचर्चित चेहरे उन्हीं से उर्जा पा रहे हैं। अन्ना हजारे, राजेन्द्र सिंह, बहुगुणा, बाबा आप्टे जैसी कई महानात्माएं है - जिन्होंने साबित कर दिया है कि गांधीजी के विचार सदा सर्वदा प्रासंगिक रहेंगे, बस उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में आम जनता तक पहुँचाने की जरुरत है।
इस पोस्ट के माध्यम से ऐसे ही सच्चे और सार्थक प्रयासों को नमन करता हूँ।

10 comments:

  1. गांधी जी के बारे में बार बार आईन्स्टीन की कही वही उक्ति याद आती है की कभी लोग यह भी विस्वास नहीं करेगें की हांड मांस की ही बनी एक ऐसी शख्शियत इस धरा पर विद्यमान थी -
    गांधी तो बन पाना मुश्किल है -पर गांधी का सच्चे दिल से स्मरण ही मनुष्यता की अव्भिव्यक्ति है -आप सच्चे गांधी अनुयायी हैं अभिषेक ! हमें आप सरीखे नवयुवकों पर फख्र है !

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  2. आज गांधीजी हमारे बीच नहीं हैं , मगर उनके मार्ग को सही परिप्रेक्ष्य में आम जनता तक पहुँचाने आपने भी बहुत सच्‍चा और सार्थक प्रयास किया .. उसके लिए आप साधुवाद के पात्र तो हैं ही !!

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  3. बहुत बढ़िया पोस्ट।
    आपके प्रयास की सराहना करता हूँ।
    बधाई!

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  4. सहमत !!
    पर मिश्र जी कुछ तथाकथित गांधीवादियों का भी नाम लेते जो आज तक गांधी के विचारों की रोटी खा रहे हैं !!

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  5. Bilkul sahi kaha aapne !!

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  6. अभिषेक भाई ,
    वास्तव में गान्धी जी को उनके समकालीन जन ने इसी लिये स्वीकार किया कि गान्धी ने जन्ता से सुगम एवं सीधे सम्प्रेषण की राह चुनी और वह इसमें सफ़ल भी रहे और विधु विनोद चोपडा और राजकुमार हिरानी की जोड़ी ने भी यही किया । दोनो ने अपने युग के अनुसार तरीके और माध्यम चुने कालान्तर का युग-शैली मान्यताओं- प्रम्पराअओं का ध्यान रखा , अतः गान्धी और यह फ़िल्म-कार जोड़ी दोनो सफ़ल रहे ।

    इस फ़िल्म-कार जोड़ी ने गान्धी को नही थोपा ,केवल उनके मूल-विचारों का ही सम्प्रेषण मात्र करते हुए यह भी स्पष्ट रूप से स्थापित कर दिया कि गान्धी वो नही है , जो कभी एक व्यक्ति था और अब सरकारी कार्यालयों में फ़्रेम होकर अपने हाथ की पाञ्च अन्गुलियों से पञ्च-भूत का इशारा कर रहा है ; वरन हर एक का अपना गान्धी अपने अन्दर है और वो आप की अन्तर आत्मा है ,“ गान्धी का जन्म या यों कहना ज्यादा उचित होगा कि ‘मोहन दास’ नामक एक युवक का रूपान्तरण अन्तर-आत्मा की ध्वनिहीन पुकार से हुआ था , हर एक की अन्तर=आत्मा उसे ,उसके हर गलत कदम पर उसी प्राकार से पुकार कर सावधान करती है जैसे गान्धी की अन्तर-आत्मा ने उन्हे पुकारा था ,उन्हों ने वह ध्वनिहीन पुकार सुन ली और गान्धी बन गये ।

    ? ? ? और हम आप?????????????!!!!!!!!!!!!!!

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  7. गांधी जी के बारे में बार बार आईन्स्टीन की कही वही उक्ति याद आती है की कभी लोग यह भी विस्वास नहीं करेगें की हांड मांस की ही बनी एक ऐसी शख्शियत इस धरा पर विद्यमान थी -
    गांधी तो बन पाना मुश्किल है -पर गांधी का सच्चे दिल से स्मरण ही मनुष्यता की अव्भिव्यक्ति है -आप सच्चे गांधी अनुयायी हैं अभिषेक ! हमें आप सरीखे नवयुवकों पर फख्र है !
    Arvind Misra ji ki baat se puri tarah sahmat hu...bahut achhi post ...

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  8. गाँधी जी ने आजादी की लडाई के सहयोग किया और वो भी व्यापक स्तर पर
    पर गांघी जी ने कुछ एतिहासिक अक्षम्य गलतियाँ की जिस का असर आज तक है .
    (१) जिस असहयोग आन्दोलन के कारण हजारो विद्यार्थियों ने अपने कालेज छोड़ दिए बहुत लोगो ने अपनी नौकरी छोड़ दी चौरा चौरी कांड के बाद उन्हों ने वापस ले लिया पर उन लोगो के बारे में नही सोचा ?????
    (२) मोपलो द्वारा किये गए दंगे में ये वहा हिन्दुओ को समझाते रहे की आप कुछ मत करे चाहे दंगाई कुछ भी करे और हजारो हिन्दू वहा क्रूरता पूर्वक मारा गया.
    (३)भगत सिंह को अगर वे चाहते तो बचा सकते थे तो उन्हों ने प्रयास क्यों नही किया ?????
    (४) गाँधी जी अहंकारी थे . सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधी जी समर्थित प्रत्याशी सीतारमईया को हराने के बाद भी गाँधी जी के जिद के आगे इस्तीफा दिया तो इन हो ने सरदार पटेल के साथ भी घोर अन्याय किया क्यों ?????
    क्यों की गाँधी जी ने नेहरू को सत्ता दिलाई इसी लिए इन कांग्रेसियों ने इन को महान घोषित कर दिया . क्या ये राष्ट्र से ऊपर है जो इन को राष्ट्रपिता घोषित कर रक्खा है .
    अहिंसा वीरो का आभूषण है पर अफ़सोस है गाँधी वाद की आढ़ में कायर अपने बचाव में इस का प्रयोग करते है जैसे गाँधी जी खुद .
    पाकितान को ५६ करोण गाँधी जी के हठ के कारण देने पड़े . ये रुपये विस्थापितों के बहुत काम आते जिन होने उस के बाद कई दशको तक आर्थिक तंगी झेली
    जब कभी सही इतिहास लिखा जायेगा तो नत्थू राम गोडसे जी को शहीद का दर्जा दिया जायेगा.
    ये करमचंद्र गाँधी कितने बड़े महात्मा थे नीचे दिए लिंक से पता चलता है.
    http://awyaleek.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html

    महात्मा हो तो गाँधी जी जैसा

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  9. गांधी जी के बारे में बार बार आईन्स्टीन की कही वही उक्ति याद आती है की कभी लोग यह भी विस्वास नहीं करेगें की हांड मांस की ही बनी एक ऐसी शख्शियत इस धरा पर विद्यमान थी -
    गांधी तो बन पाना मुश्किल है -पर गांधी का सच्चे दिल से स्मरण ही मनुष्यता की अव्भिव्यक्ति है -आप सच्चे गांधी अनुयायी हैं अभिषेक ! हमें आप सरीखे नवयुवकों पर फख्र है !

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