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Monday, January 3, 2011

क्रन्तिकारी - जो हो गए देश पर फ़िदा


लगभग एक वर्ष के अंतराल के बाद इस ब्लॉग का आपके समक्ष पुनर्वापसी का प्रयास कर रहा हूँ. गांधीजी के विचारों पर आधारित अपने ब्लॉग पर क्रान्तिकारियों के भी पावन स्मरण का मेरा उद्देश्य इस तथ्य को पुनर्स्थापित करना भी है कि गांधीजी और क्रांतिकारियों के बीच मतभिन्नता थी ( इस Terminology का प्रयोग इस उद्देश्य से किया जा रहा है क्योंकि चंद लोग इससे विशेष परिचित होंगे ) मगर मन तथा उद्देश्य की नहीं, जैसा उन तत्वों द्वारा कुप्रचारित किया जाता रहा है जो इतिहास को काट-छांट कर अपने सुविधानुरूप अध्ययन और व्याख्या किया करते हैं.

बीता दिसंबर माह अपने साथ आजादी के दीवाने दो अमर शहीदों खुदीराम बोस का जन्मदिवस और पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी की पुण्यतिथी को ख़ामोशी से याद करता गुजर गया. ब्रिटिश अधिकारी किग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंकने, जिस वजह से 3 लोग मारे गए थे की सजा के रूप में आनन – फानन में अदालती कार्यवाही पूरी कर मात्र 18 वर्ष की आयु में इन्हें फांसी की सजा दे दी गई थी. कहते हैं मृत्यु से पूर्व इन्होने अपनी माँ को आश्वस्त किया था कि 10 माह 10 दिन पश्चात ये पुनः जन्म लेंगे, और तब यदि पहचान सको तो गरदन पर बने निशान से पहचान लेना. इस मार्मिक प्रसंग की पृष्ठभूमि में प्रख्यात कवि काजी नसरुल इस्लाम ने 18 वर्षों के बाद भी अपनी पंक्तियों के माध्यम से इन्हें पुनः याद करने का एक प्रयास किया था.

ऐसे ही एक क्रन्तिकारी अमर शहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी की पुण्यतिथी (18/12/1927) भी बिना किसी शोर - गुल के गुजर गई. काकोरी षड्यंत्र केस में फांसी की सजा पाए इस क्रन्तिकारी कवि ने अपनी कालकोठरी की दीवारों पर चंद पंक्तियाँ लिखी थीं –

“महसूस हो रहे हैं बड़े फ़ना के झोंके,

खुलने लगे हैं मुझपर असरार जिंदगी के;

बारे आलम उठाया रंगे निशान देखा,

आये नहीं हैं यूँ ही अंदाज बेहिसी के;

वफ़ा पर दिल को सदके जान को नज़ारे जफा कर दे,

मुहब्बत में यह लाजिमी है कि जो कुछ हो फ़िदा कर दे.

(कामना करता हूँ कि शायद राजनीति के शातिर खिलाडी इन पंक्तियों में छुपे भावार्थ को समझ सकें)

आइये, इन अमर शहीदों को कोटिशः नमन करते हुए ऐसा परिवेश बनाने का प्रयास करें जिसमें ऐसे क्रांतिकारियों के व्यक्तित्व तथा योगदान का समग्र मूल्यांकन किया जा सके; ताकि कतिपय स्वार्थी तत्वों तथा क्षद्म राष्ट्रवादियों द्वारा इन्हें क्षेत्रीयता, जातीयता तथा क्षुद्र राजनीतिक खानों में कैद करने के संकीर्ण प्रयासों को नकारा जा सके. हमारे देश का इतिहास, संस्कृति तथा विरासत किसी समूह विशेष की कॉपीराइट संपत्ति नहीं है. यह हमारी साझी विरासत है, और बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के भी इसे संभालने में इस देश की जनता स्वयं भी सक्षम है.

12 comments:

  1. welcome back...nice and knowledgeable post...

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  2. आप एक साल बाद आये हैं और मैं इसी साल आया हूँ. अच्छा हुआ आप मिल गए. शायद आज हम उन शहीदों को भुला चुके हैं या शहादत का भी राजनीतिकरण हो चुका है.

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  3. काजी नजरुल इस्लाम की रचनाओं के इस अंश को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. आभार.

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  4. एक चिर प्रासंगिक विषय पर संयत और संतुलित विचार! क्रांतिकारियों और गांधी जी के विचार के वैषम्य पर भी लिखिए ...

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  5. most welcome....kaphi achcha lag raha hai ..aapne fir se likhna suru kar diya...thanks a lot for this....and very happy new year...

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  6. अपका ये प्रयास बहुत सार्थक है। ऐसे समय मे जब सभी अपने महान शहीदों को और क्रान्तिकारियों को भूलते जा रहे हैं ऐसे समय मे ऐसे ब्लाग का पुन: चालू करना एक सार्थक प्रयास है। बधाई और शुभकामनायें।

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  7. अभिषेक जी प्रणाम......!
    आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हु...फिर भी एक बार फिर से आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत करता हूँ .....
    इन देशभक्त क्रांतिकारियों से आपके द्वारा परिचित होके अच्छा लगा .....
    गांधीजी के बारे में आने वाली आपकी अगली पोस्ट के लिए उत्सुक हूँ.....

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  8. अभिषेक भाई, इस शमा को जलाए रखिए।
    ---------
    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  9. Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..

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  10. क्रान्तिकारियों का स्‍मरण करना आज आवश्‍यक हो गया है, आपको इस प्रयास के लिए बधाई।

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  11. संदेशपरक ...सुन्दर ..बधाई

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