गांधीजी
के शहीद दिवस पर एक गंभीर चर्चा की आवश्यकता समझते हुए गांधीजी और गोडसे के उस
वैचारिक मतभिन्नता को याद करना सामयिक होगा जो आज भी इस देश के अस्तित्व में है.
इस क्रम में असगर वजाहत जी के नाटक 'गोडसे@गाँधी.कॉम'
से साभार कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमें इन दोनों के मध्य वार्तालाप का
काल्पनिक वर्णन करते हुए एक वैचारिक विमर्श रचित किया गया है.
नाटक
के शुरूआती अंश में अस्पताल से स्वस्थ हो गांधीजी गोडसे से मिलने जेल पहुँचते हैं-
गांधी : नाथूराम..परमात्मा ने तुम्हें साहस
दिया.. और तुमने अपना अपराध कुबूल कर लिया.. सच्चाई और हिम्मत के लिए तुम्हें
बधाई देता हूँ।
नाथूराम: मैंने तुम्हारी
बधाई पाने के लिए कुछ नहीं किया था।
गांधी: फिर तुमने अपना
जुर्म कुबूल क्यों किया है?
नाथूराम : (उत्तेजित हो कर) जुर्म.. मैंने कोई अपराध नहीं किया है।
मैंने यही बयान दिया है कि मैंने तुम पर गोली चलाई थी। मेरा उद्देश्य तुम्हारा
बध करना था...
गांधी : तो तुम मेरी हत्या को अपराध नहीं
मानोगे?
नाथूराम : नहीं...
गांधी : क्यों?
नाथूराम : क्योंकि मेरा उद्देश्य महान था..
गांधी : क्या?
नाथूराम : तुम हिंदुओं के शत्रु हो..सबसे बड़े
शत्रु..इस देश को और हिंदुओं को तुमसे बड़ी हानि हुई है...हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान अर्थात हिंदुत्व को बचाने के लिए
एक क्या मैं सैकड़ों की हत्या कर सकता हूँ।
गांधी : ये तुम्हारे विचार हैं.. मैं विचारों
को गोली से नहीं, विचारों से समाप्त करने पर विश्वास करता हूँ...
नाथूराम : मैं अहिंसा को अस्वीकार करता हूँ।
गांधी : तुम्हारी मर्जी... मैं तो यहाँ केवल
यह कहने आया हूँ कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया।
नाथूराम : (घबरा कर) ... नहीं-नहीं.. ये कैसे हो सकता है?
गांधी : मैं अदालत में बयान देने भी नहीं
जाऊँगा।
नाथूराम: (अधिक घबरा कर) नहीं.. नहीं.. तुम ये नहीं कर सकते।
गांधी : (शांत स्वर में) गोडसे..तुमने अपनी अंतरात्मा की आवाज
सुनी.. मुझे मेरी अंतरात्मा की आवाज सुनने दो..।
नाथूराम : तुम्हारी हत्या के आरोप में मैं
फाँसी पाना चाहता था।
गांधी : परमात्मा से माँगो, तुम्हारे मन को शांत रखे... दूसरे के लिए हिंसा अपने लिए भी हिंसा..ये क्या
है नाथूराम...तुम ब्राह्मण हो, ब्राह्मण के कर्म में ज्ञान,
दया, क्षमा और आस्तिकता होनी चाहिए।
नाथूराम : मुझे मेरा कर्म मत समझाओं गांधी... मैं
जानता हूँ।
गांधी : ईश्वर तुम्हें शांति दे...।
गांधीजी के प्रति अपनी घृणा जो गोडसे में कम
नहीं होती, इसकी झलक इस प्रसंग से मिलती है जहाँ गांघीजी द्वारा कॉन्ग्रेस का
त्याग करने पर वो अपने विचार व्यक्त करता है –
करकरे
: नाथूराम...देखा तुमने
नाथूराम : क्या करकरे...।
करकरे : ये देखा... गांधी ने कांग्रेस छोड़ दी
है।
(नाथूराम और नाना अखबार देखते है।)
नाथूराम : सब पाखंड है... गांधी तो सदा झूठ बोलता
ही रहा है। उसकी किसी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
नाना : क्या छापा है... दिखाओ।
(तीनों अखबार पढ़ते हैं।)
नाथूराम : गांधी तो पूरा पाखंडी है। कांग्रेस
छोड़ दी... अरे वह तो कांग्रेस का मेंबर तक नहीं था।
करकरे : पर अखबार में झूठ कैसे छप सकता है।
नाथूराम : गांधी ने कभी सच बोला है? कहा करता था पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। लेकिन देखा क्या हुआ। पाकिस्तान
का पिता जिन्ना नहीं, गांधी है। हिंदुओं का जितना अहित
औरंगजेब ने न किया होगा, उससे ज्यादा गांधी ने किया है... पवित्र
भूमि पर इस्लामी राष्ट्र का निर्माण उसकी ही नीतियों के कारण हुआ है।
(नाथूराम उठ कर बेचैनी से टहलने लगता है। उसके
चेहरे पर पीड़ा और क्रोध दिखाई पड़ता है। लगता है वह बहुत भावुक हो गया है। वह
धीरे-धीरे पर बड़े ठहरे हुए ढंग से बोलता है।)
नाथूराम : नाना, अपने को असहाय
समझने, अपमानित होने और निष्क्रिय बौद्धिकता की एक सीमा
है... जब मुझे लगा था कि एक आदमी है... हमारे-तुम्हारे जैसा आदमी... वह इतना
शक्तिशाली है कि जूरी भी वही है, जज भी वही है। मुकद्दमा
दायर वही करता है, सुनता भी वही है और फैसला भी वही सुनाता है...और सारा देश उसका फैसला मान लेता है... और यह सब होता है हमारी कीमत पर... मतलब
हिंदुओं की कीमत पर नाना, यह देश हमारा है... पवित्र
मातृभूमि है... हमारी कीमत पर मुसलमानों को सिर पर चढ़ाना इतना अपराध है जिसकी कल्पना
नहीं की जा सकती। गांधी यही करता रहा है... शुरू से, खिलाफत
आंदोलन से ले कर पाकिस्तान बनने तक... यही वजह थी कि मुझे अपना जीवित रहना
अर्थहीन लगने लगा था... हिंदुत्व के लिए, मातृभूमि के लिए,
हजारों साल की संस्कृति के लिए क्या एक आदमी, मेरे जैसे तुच्छ आदमी, अपना बलिदान नहीं दे सकता?
क्या पूरी हिंदू जाति नपुंसक हो गई है। गुरू जी ने कहा था कि गांधी
ने अपनी उम्र जी ली है तब मुझे लगा था कि यही समय है, यह
निकल गया तो हमेशा हाथ मलते रह जाएँगे। यह मातृभूमि और हिंदू जाति के लिए मेरी
तुच्छ सेवा होगी जिसे कानूनी तौर पर चाहे अपराध माना जाए लेकिन ईमानदारी से
इतिहास लिखनेवालों के लिए यह एक स्वर्णिम अध्याय होगा... समझे तुम।
नाना : तुम महान हो... गोडसे।
गोडसे : ये बकवास है नाना... कोरी बकवास... मैं
अपने उद्देश्य को पूरा न कर सका... तुम अनुमान लगा सकते हो कि मेरे मन में कैसी
ज्वाला धधक रही है?
गाँधीजी
के ग्राम स्वराज के प्रयासों की सूचना गोडसे तक अख़बारों के माध्यम से पहुँचती है
तो वह अपने विचार व्यक्त करता है –
करकेर
: ये गांधी क्या
कर रहा है, समझ में नहीं आता।
गोडसे : (लापरवाही से) यह सब मजाक है करकरे... गांधी ने हर
काम इसी तरह किया है।
करकरे : लेकिन सरकार से इस तरह का व्यवहार
करना तो कठिन है।
गोडसे : सरकार किसकी है? उसी की सरकार है, वही सबसे बड़ा मुखिया है...
करकरे : गांधी की लोकप्रियता... भी बढ़ रही
है... आदिवासी क्षेत्र में स्वराज का काम फैल रहा है...
गोडसे : तुम भ्रम में हो करकरे... सच्चाई कुछ
और है...
(नाना आप्टे कुछ चिट्ठियाँ और एक पैकेट लिए मंच पर
आते हैं। )
नाना : (गोडसे को चिट्ठियाँ देते हुए) ... तुम्हारी डाक दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है...
करकरे : इस पैकेट में क्या है?
गोडसे : लो खोल कर देख लो।
(करकरे पैकेट खोल कर देखता है। )
नाना : अरे ये तो स्वेटर है...
करकरे : ये पत्र भी है... देखो
(करकरे पत्र गोडसे को दे देता है। )
गोडसे : (पढ़ता है) परम पूजनीय हिंदू हृदय सम्राट महामना
श्री नाथूराम गोडसे जी...।
(रूक जाता है।)
नाना : पढ़ो-पढ़ो, क्या लिखा है?
गोडसे : लो, तुम ही पढ़ो।
नाना : शहर की समस्त हिंदू स्त्रियों की ओर
से चरण स्पर्श... करने के बाद निवेदन है कि जाड़ा आ रहा है और सर्दी से बचने के
लिए हमारी छोटी-सी भेंट स्वीकार...
करकरे : (बात काट कर) कमाल है गोडसे तुम्हारी लोकप्रियता
आकाश छू रही है।
नाना : गोडसे जब तुम अदालत में बयान दिया करते
थे तो मैंने लोगों की आँखों से टप-टप आँसू बहते देखा हैं। लोग इतना प्रभावित और
द्रवित हो जाते थे कि रोते थे...
गोडसे : इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं
नाना... मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूँ... मेरे पास कॉलिज क्या, स्कूल तक का कोई प्रमाण-पत्र नहीं है... लेकिन मुझे श्रद्धा करनेवाले
हजारों-लाखों हैं। क्योंकि हिंदुत्व की रक्षा ही मेरा जीवन है।
करकरे : वार्डर बता रहा था कि नौजवान तुम्हारी
एक झलक पाने के लिए जेल के चक्कर लगाया करते हैं।
गोडसे : गुरूजी का आशीर्वाद है... यह उनका ही
दिखाया हुआ रास्ता है। उन्होंने साफ शब्दों में मुझसे कहा था कि हिंदू हितों की
उपेक्षा करनेवाले देश शत्रु है और शत्रु को मित्र नहीं समझना चाहिए... पर दुख की
बात है कि मैं अपना काम पूरा नहीं कर सका।
नाना : नाथूराम, दुख मत करो...
भगवान तुम्हें अवसर देगा। न्याय होकर रहेगा। और यह अच्छा है कि गांधी सत्ता से
दूर चला गया है। लगता है अब कांग्रेस में उसका वह स्थान भी नहीं है जो पहले हुआ
करता था।
गोडसे : कुछ हो या न हो... गांधी भारत विभाजन
का अपराधी है और भारत विभाजन को तुम क्या समझते हो नाना... यह हमारे धर्म, इतिहास और आस्था का विभाजन है।... और सुनो विभाजन के बाद असंख्य हिंदुओं
की हत्या करने और बाकी हिंदुओं को पाकिस्तान से भगानेवाले मुसलमानों से गांधी की
सरकार ने कहा - आप लौट आइए... हमारा देश धर्म निरपेक्ष है, आप
कैसा भी व्यवहार क्यों न करें हम तो आप से भला ही व्यवहार करेंगे... आपको मारने
के लिए कोई हाथ उठाएगा तो उसका पूरा नाश करने के लिए हमने सेना को तैयार कर लिया
है। हमारी बंदूक आपके ऊपर कभी नहीं तनेगी क्योंकि उसमें हिंसा होने का भय है...
नाना : इसी को गुरुजी मुस्लिम तुष्टिकरण कहते
हैं...
गोडसे : हाँ... बिलकुल ठीक कहते हो, लेकिन इतिहास का चक्र घूम चुका है।
ग्राम
स्वराज और स्वशासन के गांधीजी के प्रयासों को देशहीत में न मानते हुए उन्हें जेल
की सजा दी जाती है, जहाँ वो गोडसे के ही कक्ष में रखे जाने की जिद करते हैं; जो
अंततः माँ ली जाती है. इस कक्ष में इनके बीच लगातार ‘डायलोग’ चलते हैं –
गोडसे : तुम इस वार्ड
में मेरे पास क्यों आना चाहते थे।
गांधी : वैसे तो लंबी बात है, कम में कहा जाए तो ये समझ लो, मेरे ऊपर गोली चलाने
के बाद तुमसे लोग घृणा करने लगे या प्रेम करने लगे। कह सकते हो, घृणा करनेवालों की तादाद प्रेम करनेवालों की तादाद से ज्यादा थी। लेकिन
संख्या से क्या होता है। मैं घृणा और प्रेम के बीच से नया रास्ता, संवाद का रास्ता 'डॉयलॉग' का
रास्ता निकालना चाहता हूँ... तुमसे बात करना चाहता हूँ।
गोडसे : जरूर करो... लेकिन यह समझ कर न करना कि
मेरे विचार कच्ची मिट्टी के घड़े हैं।
गांधी : नहीं गोडसे... मैं मानता हूँ, तुम्हारे विचार बहुत पक्के हैं, तुम्हारा विश्वास
बहुत अडिग है, तुम साहसी हो क, ऐसा न
होता तुम भरी प्रार्थना सभा में मेरे ऊपर गोली न चलाते... उसके बाद आत्मसमर्पण न
करते।
गोडसे : हाँ, ये ठीक है मैंने
जो कुछ किया था... अपने लिए नहीं किया था... मेरी तुमसे कोई निजी दुश्मनी न थी और
न है। मैं हिंदुत्व की रक्षा अर्थात हिंदू जाति, हिंदू धर्म
और हिंदुस्तान को बचाने के लिए तुम्हारी हत्या करना चाहता था।
गांधी : मैं खुश हूँ गोडसे... तुम सच बोल रहे
हो...
गोडसे : मैंने यही बात अदालत में कही थी...
गांधी : अफसोस की बात यह है कि अदालत में संवाद
नहीं होता... सिर्फ बयान और जिरह होती है...
गोडसे : संवाद होता तो क्या पूछते?
गांधी : सवाल तो यही पूछता कि हिंदू से तुम्हारा
मतलब क्या है? पहली बात यह कि यह शब्द कहाँ से आया? वेद पुराण और उपनिषदों में यह शब्द नहीं मिलता... पुराणों में लिखा है,
समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसका नाम भारत
है, यहाँ भरत की संतानें रहती हैं। (गोडसे उठ कर खड़ा हो जाता है। इधर-उधर टहलने लगता है। गांधी उसे ध्यान से
देखते हैं।)
गोडसे : गांधी, हिंदू शब्द
बहुत प्राचीन है... यह भ्रम फैलाया गया है कि हिंदू शब्द विदेशियों ने दिया था...
तुमने प्रश्न किया था कि हिंदू से मैं क्या अर्थ लेता हूँ, वैदिक धर्म और उनकी शाखाओं पर विश्वास करने वालों को मैं हिंदू मानता हूँ
और सिंधु नदी के पूर्व में जिस धरती पर हिंदू बसते हैं वह हिंदुस्थान है।
(बावनदास और प्यारेलाल भी बैठ कर बातचीत सुनने लगते
हैं। )
गांधी : गोडसे तुम 'हिंदूस्थान' से प्रेम करते हो।
गोडसे : प्राणों से अधिक।
गांधी : क्या मतलब?
गांधी : तुमने सिंधु से लेकर असम और कश्मीर से
लेकर कन्याकुमारी तक का इलाका देखा है?
गोडसे : तुम कहना क्या चाहते हो गांधी...।
गांधी : (प्यारेलाल से) ... चर्खा इधर उठा दो... मेरे हाथ काम माँग रहे हैं।
(प्यारेलाल
और बावनदास चर्खा उठा कर गांधी के सामने रख देते हैं। वे चर्खा चलाने लगते हैं।)
गांधी : (गोडसे से) मैं 1915 में जब भारत आया था और यहाँ सेवाभाव से काम करना चाहता था तो मेरे गुरु
महामना गोखले ने मुझसे कहा था कि गांधी हिंदुस्तान में कुछ करने से पहले इस देश को
देख लो। और मैंने एक साल तक देश को देखा था। और उसका इतना प्रभाव पड़ा कि मैं चकित
रह गया।
गोडसे : कैसे?
गांधी : जिसे हम 'हिंदुस्थान' या 'हिंदुस्तान'
कहते हैं वह एक पूरा संसार है गोडसे... और उस संसार में जो कुछ
है... जो रहता है... जो काम करता है... उससे हिंदुस्तान बनता है...
गोडसे : ये गलत है 'हिंदुस्थान' केवल हिंदुओं का देश है...
गांधी : तुम हिंदुस्तान को छोटा कर रहे हो
गोडसे... हिंदुस्तान तुम्हारी कल्पना से कहीं अधिक बड़ा है... परमेश्वर की
विशेष कृपा रही है इस देश पर...
गोडसे : सैकड़ों साल की गुलामी को तुम कृपा मान
रहे हो?
गांधी : गोडसे, असली आजादी मन
और विचार की आजादी होती है... हिंदूमत कभी पराजित नहीं हुआ, राम
ने अपना विस्तार ही किया है...
गांडसे : तुम्हें राम से क्या लेना-देना...
गांधी... तुमने तो राम और रहीम को मिला दिया। ईश्वर अल्लाह को तुम एक मानते
हो...
गांधी : हाँ, गोडसे मैं वही
कर रहा हूँ जो यह देश हजारों साल से करता आया है... समझे? समन्वय
और एकता।
गोडसे : समन्वय... यह शब्द... मैं इससे घृणा
करता हूँ... हम विशुद्ध हैं... हमें हिंदू होने पर गर्व है... हम सर्वश्रेष्ठ
हैं... सर्वोत्तम हैं...
डायलौग
के अगले चरण में पुनः –
गोडसे
: नहीं... उसने
जो कहा वह सत्य ही कहा है। देश के बहुत से भोलेभाले लोगों को यह नहीं मालूम कि
तुम हिंदू विरोधी हो।
गांधी : कैसे गोडसे?
गोडसे : एक-दो नहीं सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते
हैं... सबसे बड़ा तो यह है कि तुमने कहा था न कि पाकिस्तान तुम्हारी लाश पर
बनेगा... उसके बाद तुमने पाकिस्तान बनाने के लिए अपनी सहमति दे दी।
गांधी : गोडसे... मैंने जो कहा था... वह सत्य
है... सावरकर ने कहा था कि वे खून की अंतिम बूँद तक पाकिस्तान के विचार का विरोध
करेंगे... लेकिन देखो आज मैं जीवित हूँ... सावरकर के शरीर में पर्याप्त खून है...
पर एक बात है गोडसे...।
गोडसे : क्या?
गांधी : मैं पाकिस्तान बनाने का विरोध कर रहा
था और करता हूँ... तो ये बात समझ में आती है... पर मुझे समझा दो कि सावरकर पाकिस्तान
का विरोध क्यों करते है?
गोडसे : क्या मतलब... मातृभूति के टुकड़े...।
गांधी : (बात काट कर) ... सावरकर तो यह मानते हैं... लिखा है उन्होंने कि
मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग राष्ट्रीयताएँ हैं... इस विचार के अंतर्गत तो उन्हें
पाकिस्तान का स्वागत करना चाहिए...
गोडसे : यह असंभव है... गुरुजी... पर आरोप
है...
गांधी : सावरकर की पुस्तक 'हिंदू राष्ट्र दर्शन'... मैंने पुणे जेल में सुनी
थी... कृपलानी ने सुनाई थी देखो... अगर तुम किसी को अपने से बाहर का मानोगे और वो
बाहर चला जाता है तो इसमें एतराज कैसा? हाँ, भारत विभाजन का पूरा दुख तो मुझे है क्योंकि मैं इस सिद्धांत को मानता ही
नहीं कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं।
गोडसे : अगर तुम पाकिस्तान के इतने ही विरोधी
हो तो तुमने 55 करोड़ रुपए दिए जाने के लिए आमरण अनशन क्यों किया
था?
गांधी : रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाय पर
वचन न जाई। पाकिस्तान-हिंदुस्तान का कोई सवाल ही न था... सवाल था अपने वचन से
मुकर जाने का... समझे...
गोडसे : तुमने अपने सिद्धांतों की आड़ में सदा
मुसलमानों का तुष्टीकरण किया है।
गांधी : दक्षिण अफ्रीका में मैंने जो किया, क्या वह केवल मुसलमानों के लिए था? चंपारण, अहमदाबाद के आंदोलन क्या केवल मुसलमानों के लिए थे? असहयोग आंदोलन में क्या केवल मुसलमान थे? हरिजन
उद्धार और स्वराज का केंद्र क्या मुसलमान थे? हाँ, जब मुसलमान ब्रिटिश साम्रज्यवाद के विरूद्ध खिलाफत आंदोलन में उठ खड़े
हुए तो मैंने उनका साथ दिया था... और इस पर मुझे गर्व है।
गोडसे : खिलाफत आंदोलन से प्रेम और अखंड भारत
से घृणा यही तुम्हारा जीवन दर्शन रहा है... हिंदू राष्ट्र के प्रति तुम्हारे मन
में कोई सहानुभूति नहीं है।
गांधी : हिंदू राष्ट्र क्या है गोडसे?
गोडसे : वो देखो सामने मानचित्र लगा है... अखंड
भारत...
(गांधी उठ कर नक्शा देखते हैं।)
गांधी : गोडसे... यही अखंड भारत का नक्शा है?
गोडसे : हाँ... यह हमारा है... भगवा लहराएगा...इस क्षेत्र में...
गांधी : गोडसे... तुम्हारा अखंड भारत तो
सम्राट अशोक के साम्राज्य के बराबर भी नहीं है... तुमने अफगानिस्तान को छोड़
दिया है... वे क्षेत्र छोड़ दिए हैं जो आर्यो के मूल स्थान थे... तुमने तो
ब्रिटिश इंडिया का नक्शा टाँग रखा है... इसमें न तो कैलाश पर्वत है और न मान
सरोवर है...
गोडसे : ठीक कहते हो गांधी... वह सब हमारा
है...
गांधी : गोडसे... तुमसे बहुत पहले हमारे
पूर्वजों ने कहा था, वसुधैव कुटुंबकम... मतलब सारा संसार एक परिवार है...
परिवार... परिवार की मर्यादाओं का ध्यान रखना पड़ता है।
इस बीच
जेल में गांधीजी अपना सफाई अभियान भी आरंभ करदेते हैं जिसमें शुद्धाताप्रिय गोडसे
भाग नहीं लेता.
इस बीच
एक विवाह अवसर पर गांधीजी नवदंपत्ति को गीता की प्रति भेंट करते हैं. गोडसे यह देख
उनसे प्रश्न करता है –
गोडसे
: तुमने गीता
भेंट की है?
गांधी : हमेशा... हर जोड़े को गीता भेंट करता
हूँ। और ये भी जानता हूँ कि तुम भी...
गोडसे : गीता मेरा जीवन दर्शन है।
गांधी : गीता मेरा भी दर्शन है।... कितनी अजीब
बात है गोडसे।... गीता ने तुम्हें मेरी हत्या करने की प्रेरणा दी और मुझे तुम्हें
क्षमा कर देने की प्रेरणा दी... ये कैसा रहस्य है?
गोडसे : तुमने गीता को तोड़-मरोड़ कर अहिंसा से
जोड़ दिया है, जबकि गीता निष्फल कर्म का दर्शन है। युद्ध के
क्षेत्र में निष्फल कर्म से प्रेरित अर्जुन अपने प्रियजनों तक की हत्या कर देते
हैं।
गांधी : लड़ाई के मैदान में हत्या करने और
प्रार्थना सभा में फर्क है गोडसे।
गोडसे : कर्म के प्रति सच्ची निष्ठा ही काफी
है। स्थान का कोई महत्व नहीं है। महाभारत तो जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है।
गांधी : गोडसे... मैंने पूरे जीवन जितनी मेहनत
गीता को समझने में की है... उतनी कहीं और नहीं की है... गीता कर्म की व्याख्या भी
करती है... गीता के अनुसार यज्ञ कर्म मतलब, दूसरों की भलाई के लिए
किया जाने वाला काम ही है। हत्या किसी की भलाई में किया जाने वाला काम नहीं हो
सकती।
गोडसे : मुद्दा यह है कि हत्या क्यों की जा
रही है? उद्देश्य क्या है? कितना
महान है, कितना पवित्र है?
गांधी : गोडसे... तुमसे शिकायत है... तुमने
मेरी आत्मा को मारने का प्रयास क्यों नहीं किया?
गोडसे : आत्मा? वो तो अजर और
अमर है...
गांधी : और शरीर का कोई महत्व नहीं है। तुमने
कम महत्व के शरीर पर हमला किया... और आत्मा को भूल गए।
गोडसे : तुम्हारा वध हिंदुत्व की रक्षा के लिए
जरूरी था।
गांधी : इसका निर्णय किसने किया था?
गोडसे : देश की हिंदू जनता ने...
गांधी : कौन सी हिंदू जनता?... जिसमें मेरे अलावा सभी हिंदू शामिल थे...
गोडसे : वे सब जो सच्चे हिंदू हैं... तुम तो
हिंदुओं के शत्रु हो...
गांधी : तुम मुझे शत्रु मानते हो?
गोडसे : बहुत बड़ा, सबसे बड़ा शत्रु...
गांधी : गीता शत्रु और मित्र के लिए एक ही भाव
रखने की बात करती है... यदि मैं तुम्हारा शत्रु था भी तो तुमने शत्रु भाव क्यों
रखा?...गोडसे, गीता सुख-दुख, सफलता-असफलता,
सोने और मिट्टी, मित्र और शत्रु में भेद नहीं
करती... समानता, बराबरी का भाव है गीता में...
गोडसे : मैं महात्मा नहीं हूँ... उद्देश्य की
पूर्ति...
गांधी : अच्छे काम भी गलत तरीके और भावना से
करोगे तो नतीजा अच्छा नहीं निकलेगा... सब खराब हो जाएगा।
गोडसे : मैं नहीं मानता।
गांधी : हम सब अपने विचारों के लिए आजाद हैं...
लेकिन हत्या करने की आजादी नहीं है।
दोनों
के बीच चर्चाओं के दौर चलते रहते हैं और वह दिन आता है जब दोनों एक ही दिन रिहा
होते हैं. नाटक के अंतिम दृश्य का वर्णन लेखक के इन शब्दों में –
जेल का
फाटक खुलता है। गांधी और गोडसे बाहर आते हैं। दोनों रुक जाते हैं।
गांधी : नाथूराम... मैं जा रहा हूँ। वही करता रहूँगा जो कर रहा था।
तुम भी। शायद वही करते रहोगे, जो कर रहे थे।
(गोडसे गोधी की तरफ अर्थपूर्ण ढंग से देखता है।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में नजरें गड़ा देते हैं। गांधी, गोडसे को हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं। गोडसे भी हाथ
जोड़ देता है। गांधी मंच पर बाईं तरफ आगे बढ़ते हैं। गोडसे दाहिनी तरफ जाता है।
दोनों की पीठ दर्शकों की तरफ है। अचानक गांधी रुक जाते हैं, पर
पीछे मुड़ कर नहीं देखते। गोडसे भी रुक जाता है और घूम कर गांधी के पीछे आता है।
जब वह गांधी के बराबर पहुँचता है। गांधी बिना उसकी तरफ देखे अपना बायाँ हाथ बढ़ा
कर उसके कंधे पर रख देते हैं और दोनों आगे बढ़ते हैं...)
यूँ तो यह मात्र एक नाटक है, मगर इसमें व्यक्त विचारों की
प्रासंगिकता आने वाले समय में भी बनी रहेगी. अपने कथ्य की दृष्टि से इस नाटक की
प्रासंगिकता सदा बनी रहेगी, जिसके लिए लेखक हार्दिक बधाई के पात्र हैं. आवश्यकता
है कि आज भी जारी इस वैचारिक संघर्ष का एक तार्किक निष्कर्ष निकले और देश की समस्त
विचारधाराएं एकसूत्र में पिरोई जाकर देश की क्षवि और भी उज्जवल करे उसे सशक्त करे.
गांधीजी के बलिदान को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
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