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Monday, January 12, 2009

कुछ सुना- ' गांधीजी अंग्रेजी सेना में थे !'

पिछले दिनों गांधीजी की बोअर युद्ध में शामिल होने सम्बन्धी एक तस्वीर जारी की गई. सबसे पहले और सनसनी की तलाश करने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने की अपनी परंपरागत भूमिका तो निभाई ही, अफसोसजनक ढंग से प्रिंट मीडिया भी इसमें पीछे नहीं रहा. सम्पूर्ण पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने का न तो चैनलों के पास समय था न ही समाचार पत्रों के पास पर्याप्त स्थान. गांधीजी की जिंदगी स्वयं एक खुली किताब रही है. थोड़ा समय निकाल यदि द. अफ्रीका में सत्याग्रह के इतिहास की और पलट कर देख लिया गया होता तो इतिहास की जो घटना भारतीय उदार मानसिकता की प्रबल परिचायक हो सकती थी, वो मात्र एक सनसनी न बनती.
'यंग इंडिया' (1920) में एक लेख में गांधीजी ने स्पष्ट किया था कि- " मैंने ब्रिटिश साम्राज्य की खातिर चार बार अपने जीवन को संकट में डाला है; बोअर युद्ध के समय जब मैं एम्बुलेंस कोर का प्रमुख था; नेटाल में जुलू विद्रोह के समय जब मैं इसी प्रकार एम्बुलेंस कोर का प्रमुख था; गत विश्वयुद्ध की शुरुआत के समय जब मैंने एक एम्बुलेंस कोर खड़ी की थी और मुझ पर प्लूरिसी का भयंकर आक्रमण हो गया था; और अन्तिम बार दिल्ली में आयोजित युद्ध सम्मलेन में जब मैं पेचिश का ऐसा शिकार हुआ की मरते-मरते बचा. मैंने ये सारे काम इस विश्वास में किए की शायद इनसे मेरे देश को ब्रिटिश साम्राज्य में बराबरी का दर्जा मिल जाए. "
अपने देश के सम्मान के लिए अपने प्रबल विरोधियों से भी सहयोग को तत्पर गांधीजी की सरलता और प्रयोगों को सनसनी का साधन न बना यदि अपने अतिव्यस्त समय से थोड़ा समय निकाल समझने का प्रयास किया जाए तो यह उस महान आत्मा पर अनन्य उपकार होगा.
(बोअर युद्ध पर विस्तार से अगली पोस्ट में भी ..... )

4 comments:

  1. ummeed hai gaandhi ji ke baare men yah pravaah rukega nahi

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  2. सही है..जैसा भी है..अगली पोस्ट का इन्तजार.

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  3. मीडिया बातों को ज़्यादा उछलने में आज कल ज़्यादा व्यस्त है..न की गंभीर विषयों को सही ढंग से पेश कर के कुछ उपाय निकालने के ... यह सब उनके लिए एक शर्म की बात है..
    "मेरी माँ की कृतियाँ" पर टिपण्णी करने के लिए धन्यवाद..

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