यह ब्लॉग शुरू करने का मेरा उद्देश्य था कि गांधीजी के विचारों को आज के परिप्रेक्ष्य में रख पाठकों को खुद ही उनकी प्रासंगिकता के सम्बन्ध में निर्णय लेने का विकल्प दे सकूँ. फिर भी बीच -बीच में स्वयं भी आपसे मुखातिब होने की स्थितियां आ ही जाती हैं, और यह परस्पर संवाद के दृष्टिकोण से संभवतः उचित भी है.
प्रतिष्ठित पत्रिका 'आजकल' के जनवरी 2009 अंक में श्री महेंद्र राजा जैन जी का लेख 'महात्मा गाँधी- पिता बनाम राष्ट्रपिता' प्रकाशित हुआ था। इसमें उन्होंने फिल्म 'गाँधी: माई फादर' के माध्यमसे गांधीजी के व्यक्तित्व के एक जटिल पहलू की समीक्षा का प्रयास किया था. निश्चय ही फिल्म काफी साहसिक और भावपूर्ण है, तथा इसकी समीक्षा भी अच्छी की गई है. किन्तु क्या सिर्फ एक फिल्म गाँधी जी जैसे व्यक्तित्व का आईना हो सकती है! एक राष्ट्रपिता की सफलता के पीछे छुपी एक पिता की असफलता को हाईलाइट करने पर आज के प्रगतिशीलों (!) का इतना आग्रह क्यों है ? गांधीजी की जीवन यात्रा एक आम मानव से महामानव बनने की यात्रा है, जो उनके 'सत्य के साथ प्रयोग' से ही स्पष्ट है. तो फिर उनके व्यक्तिगत जीवन में जबरन तांक-झाँक कर जुगुप्सा जगाने और कहीं छुटी गर्द को ज़माने को चीख-चीख कर दिखाने का औचित्य समझ नहीं आता. यदि आप उस धुल को साफ़ नहीं कर सकते तो और कीचड़ फेंक उसका मजमा लगाने का प्रयास क्यों ? व्यावहारिक रूप से भी देखें तो हरिलाल की असफलता के लिए क्या सिर्फ गांधीजी ही दोषी थे! तब फिर आज के अन्य स्टार पिताओं के गुमनाम सुपुत्रों के बारे में क्या राय है आपकी?
अपनी प्रतिक्रिया मैंने पत्र के माध्यम से संपादक तक पहुंचाई थी जो मई, 2009 अंक में प्रकाशित की गई है। मैंने इसमें यह भी कहा कि गांधीजी पर गोली दागने का सिलसिला 60 साल बाद भी जारी है, जो दुखद है.
इस पोस्ट तथा पत्र में यह मेरी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया है और इससे किसी को ठेस पहुँचने की स्थिति में मुझे खेद भी है, किन्तु जहाँ तक मैं समझता हूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार गांधीजी के समर्थकों को भी उतना ही है.....
Mai sehmat hun...Gandhijeeeke virodhme bolna chand budheejeeviyonkaa buddheewaad ho gaya hai...barson us Mahatmatako koyi jaan nahee sakega...itnee gehraayee thee unke wyaktvme..itnee nidartaa...aur us wyaktine kabhi nahi kaha ki,use Mahatma sambodhit kiya jay...
ReplyDeleteMere vicharse,wo ek "bhooto na bhavishyati" aisee hastee ho gayee. Gandhee is dharteepe na pehle aaye naa bhavishyame aaneki sambhavna hai.
गांधीजी पर गोली दागने का सिलसिला 60 साल बाद भी जारी है, जो दुखद है.
ReplyDeleteApki baat bilkul sahi hai...
गांधी जी पर गोली दागना जरा फैशन सा भी हो लिया है एक मेजॉरटी में..आपको साधुवाद!!
ReplyDelete* प्रश्न और जिज्ञासा स्वाभविक हैं , अतः विवेचना शालीन और तार्किक तरीके से करने में कोई हर्ज नहीं।
ReplyDelete* गाँधी ने जिस धरातल पर उतर कर जो कार्य किए ...वह हर आम आदमी के बस की बात नहीं।
* गाँधी जी ने हर मुद्दे पर जिस साफगोई से अपने विचार , अपनी आत्मकथा आदि में अपने बारे में हर मुद्दे पर खुल कर अपनी आपबीती को रखा ...... वह हर व्यक्ति के बूते की बात नहीं ।
* गाँधी जी आम आदमी थे , जिसने कुछ अलग हट कर बहुत आला दर्जे के काम किए ..... पर वह भगवान या दैवीय व्यक्ति नहीं थे ।
* गलतियाँ हर व्यक्ति से होती हैं तो गाँधी जी से न हुई हों यह मानना असलियत को न मानने जैसा हो सकता है ।
* यह सच है की यदि आज गांधी होते तो अपनी गलतियों को खुले र्रोप में बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेते ।
* यह जो लोग उनके नाम पर रोटी और सत्ता की मलाई चख रहे हैं ....के कारण ही अब तक गाँधी का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सका ।
* अब इतने खेमे बन गए हैं .... इसलिए सबको सहमत होने वाला निष्कर्ष निकलना अब सम्भव नहीं ।
* विष्णु कान्त शास्त्री एक नेता से ज्याद विचारवान व्यक्ति थे ....जो आडम्बरों के ऊपर के व्यक्ति थे , उनकी बातों पर विचार कर नए निष्कर्ष निकालने की छूट इतिहास के विद्यार्थियों के साथ आम आदमी को हना चाहिए ।
* पर आज के भारत में अब खेमों से ऊपर उठकर कोई सोच ही नहीं पा रहा है .......किसी के निष्कर्ष को दरकिनार करने का सबसे बढ़िया तरीका है कि वह फलां खेमे का हैं , उसने भगवा चश्मा लगा रखा हैं ।
* एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के इतने पहलू होते हैं की ठीक तरह से उन्हें जान पाना और उनकी व्याख्या कर पाना संभव नहीं ।
*
और अंत में विष्णु वैरागी जी के शब्दों में -" आप गांधी से असहमत हो सकते हैं किन् उपेक्षा नहीं कर सकते। और दूसरी, तमाम व्याख्याओं और भाष् के बाद भी गांधी न केवल सर्वकालिक हैं अपितु आज भी प्रांसगिक भी हैं और आवश्यक भी।"
जैसे समीरलाल जी ने कहा है की एक मजोरिटी में गाँधी जी का अपमान करना एक फैशन सा हो गया है. यह हम भी देख रहें है
ReplyDeleteबन्धु
ReplyDeleteहर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है .
बड़्ड़्पन है लोगों का जो उन्हें अपने हिसाब से सोचने को मज़बूर कर रहा है .
और ऊपर से अगर कुछ नहीं कर सकते तो आलोचक तो हो ही सकते हैं.
ऐसे सभी लोगों को स्वस्थ आलोचना करनी चाहिये जिससे देश का कुछ भला भी हो.
गांधीजी पर गोली दागने का सिलसिला 60 साल बाद भी जारी है, जो दुखद है.......aaj bhi gaandhi ke apne hi unko apne desh me paraaya karte jaa rahe hai ..badi dukh ki baat hai ..
ReplyDeletekuchh mahanubhaawon ko koi kaam nahi hota ..atah wah logo ki niji jindagi me tank jhank kar famous hona chaahte hai ......
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर रही है.. आभार
ReplyDeleteकिसी को ठेस पहुचने लायक आपने कुछ नहीं लिखा है /सारे लेखक तो ब्लॉग लिखने लगे ,पत्रिकाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जारही है लोगो ने अपनी स्वम की पत्रिका निकलना शुरू कर दिया है पत्रिकाओं को लेखक ,पाठक मिलते नहीं / तो महापुरुषों की आलोचना ,लेखकों की आलोचना ,एक दूसरे की पत्रिका की बुराईबस पत्रिकाओं में यह चल रहा है /एक विद्वान ने तो एक प्रसिद्द रास्ट्रीय स्तर की पत्रिका (नाम नहीं लिख रहा हूँ )में बापू के ब्रह्मचर्य वाबत ऐसा लिखा है की उसका हवाला तक यहाँ नहीं दिया जा सकता /पुत्र की असफलता के लिए पिता को दोष देना ? कुमार गन्धर्व के साहबजादे भोपाल में शराब के नशे में साईँ मंदिर की बेंच पर पड़े रहते है और लोगों से दारू के लिए पैसे माँगा करते हैं जब के वे एक शास्त्रीय गायन में स्वम भी पारंगत हैं /वर्तमान में मैं जहाँ हूँ वहां 'आजकल 'का मई का अंक तो मिलना संभव नहीं है -कही बाहर जाने का मौका मिला तो अवश्य पढूंगा /यहाँ तो यह हालत है की गौतम राजरिशी ने मुझे सूचना दी थी की अप्रेल की पाखी में मेरा कोई पुरुस्कृत पत्र प्रकाशित हुआ है वही पत्रिका उपलब्ध नहीं हो पा रही है फरवरी की पाखी में जब मुंशी प्रेमचंदजी पर मैंने कुछ लिखा था तब वह पाखी भी इन्दोर से मगवाना पडी थी /खैर /आप तो साहित्यिक पत्रिकाएं पढ़ते ही रहते हो ,देखते नहीं एक दूसरे के संपादकों की कैसी आलोचना हो रही है ऐसे तो राजनेता तक नहीं करते वे तो बेचारे झप्पी ,बुलडोजर ,कमजोर ,लौहपुरुष तक ही सीमित है /आपका लेख अच्छा लगा
ReplyDeleteTippanee padhee...bohot bohot dhanyawad...Tasveeren khulneme der lag rahee hai...Wo khultee zaroor hain...(dharohar).
ReplyDeleteShama
किन्तु जहाँ तक मैं समझता हूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार गांधीजी के समर्थकों को भी उतना ही है.....
ReplyDeleteसत्य ही कहा आपने, एक पक्षीय अभिव्यक्ति और कब तक....................
क्या आज तक किसी ने दूसरा गांधी बनाने का साहस दिखाया........................
बातों से कार्य नहीं होते.........
वैसे भी टिप्पणियों में बह्तों ने बहुत कुछ कह दिया अधिक और क्या कहूं..............
चन्द्र मोहन गुप्त
सही कहा आपने, जो लोग कुछ नहीं कर पाते, वो महत्वपूर्ण लोगों को गाली देने का शगल पाल लेते हैं। लेकिन ऐसा करके वे सिर्फ यह साबित करते हैं कि वे मानसिक रूप से बीमार हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }
BURA MAT DEKHO ,BURA MAT SUNO ,BURA MAT KAHO
ReplyDeleteBURA MAT DEKHO
ReplyDeleteBURA MAT SUNO
BURA MAT KAHO