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Monday, March 15, 2021

दांडी यात्रा की वर्षगांठ

आजादी की 75 वीं सालगिरह पर आयोजित 'अमृत महोत्सव' की शृंखला में पूरे देश में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहेंगे। इस कड़ी में मेरा भी एक अंशदान गांधी जी, दांडी यात्रा और आजादी के आंदोलन से जुड़े कुछ और विषयों पर चर्चा का भी... गांधी जी किसी भी कार्य में स्पष्टवादिता के हिमायती थे। उनकी यही स्पष्टता उनके आंदोलनों की तैयारियों में भी झलकती थी। नमक आंदोलन या दांडी यात्रा आरम्भ करने से पूर्व भी उन्होंने 2 मार्च को वायसरॉय लॉर्ड इरविन को पत्र लिखा। पत्र के आरंभ में उन्होंने आंदोलन से पूर्व समझौते का रास्ता निकल आने के प्रयास का जिक्र किया। इसी पत्र में उन्होनें समस्त अंग्रेजों से नहीं बल्कि अंग्रेजी शासन की शोषण प्रणाली से आई दरिद्रता के प्रति अपनी नाराजगी का जिक्र किया।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्तमान सरकार दुनिया में सबसे ख़र्चीली है और इसे बनाये रखने की गरज से ही ये सारे अन्याय किये जा रहे हैं। जिस देश में हर एक आदमी की औसत रोजाना आमदनी दो आने से भी कम है उसमें आपको रोजाना 700 रु से भी अधिक मिलते हैं। उधर इंग्लैंड के बाशिंदों की औसत दैनिक आय लगभग दो रु है और वहां के प्रधानमंत्री को रोजाना सिर्फ 180 ही मिलते हैं। इस तरह आप अपनी तनख्वाह के रूप में 5000 से अधिक भारतीयों की औसत कमाई का हिस्सा ले लेते हैं, उधर इंग्लैंड के प्रधानमंत्री सिर्फ 90 अंग्रेजों की कमाई ही लेते हैं।... एक कठोर लेकिन सच्ची हकीकत को ठीक से समझाने के लिए मुझे आपका व्यक्तिगत उदाहरण पेश करना पड़ा है, नहीं तो निजी तौर पर मेरे दिल में आपके लिए इतनी इज्जत है कि मैं ऐसी कोई बात आपके बारे में नहीं कहना चाहूंगा जिससे आपके दिल को ठेस पहुंचे।..." और फिर प्रत्युत्तर में उन्हें वायसराय के निजी सचिव का पत्र मिला जिसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें यह जानकर बहुत दुख हुआ कि आप एक ऐसा रास्ता अख्तियार करने जा रहे हैं जिससे स्पष्टतः कानून भंग होगा और सार्वजनिक शांति खतरे में पड़ जाएगी। प्रतिक्रिया में गांधीजी का विचार था कि- "...यदि वायसरॉय चाहते तो गरीबों को नमक पर जो कर चुकाना पड़ता है, उसे समाप्त करके मुझे निष्क्रिय बना दे सकते थे। इस कर को चुकाने में उन्हें प्रति वर्ष 5 आने अर्थात लगभग अपनी तीन दिन की कमाई देनी पड़ती है। मैं तो नहीं जानता कि भारत के अलावा किसी और देश में भी किसी को यदि उसकी सालाना आमदनी 360 रु हो तो 3 रुपये कर स्वरूप दे देने पड़ते हों।... वे उस राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आसानी से हार नहीं मानता, सहज ही अपने किए पर पश्चाताप नहीं करता। अनुनय- विनय से उसका हृदय नहीं पिघलता। शारीरिक शक्ति का दबदबा वह तुरंत स्वीकार करता है। वह मुक्केबाजी के किसी दंगल को घंटों तक सांस रोक कर बिना थके-ऊबे हुए देख सकता है।... हम चाहे जितनी जोरदार और कायल करने वाली दलील दें वह उससे प्रभावित होकर उन करोड़ों रुपयों की ओर से मुंह नहीं मोड़ सकता जो वह प्रतिवर्ष भारत से लूट कर ले जाता है। सो वायसरॉय महोदय के उत्तर से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ।..." और फिर उस महान पदयात्रा के आह्वान का वक्त भी आ गया। साबरमती आश्रमवासियों और अपने सहयात्रियों को उन्होंने संबोधित करते हुए कहा- "...अपने सिर पर भारी जिम्मेवारी लेकर रवाना होने वाले हम आश्रमवासियों के पास एक ही पूंजी है। हम विद्वता की डींग तो हांक नहीं सकते। हमने जो व्रत लिए हैं और आश्रम जीवन की प्रतिज्ञा की है, हमें उन व्रतों का ही पालन करते रहना है। ये 72 लोग आश्रम-नियमावली को फिर से जांच लें और अपने जाने, न जाने की बात पर विचार कर लें। जिन आश्रमवासियों का कोई आश्रित है उसके लिए उन्हें आश्रम से पैसा नहीं मिल सकता। आश्रम के भरोसे किसी को इस लड़ाई में भाग नहीं लेना चाहिए। यह लड़ाई नाटक नहीं है; बल्कि यह आखिरी लड़ाई है। यदि उपद्रव हुआ तो हम अपने ही लोगों के हाथों मारे जा सकते हैं। उस हालत में भी हम तो सत्याग्रही के नाते अपना काम पूरा कर चुके होंगे... यदि हममें इतनी शक्ति न हो तो हमें इस लड़ाई में भाग नहीं लेना चाहिए। ... आप या तो मर कर या स्वराज्य लेकर ही लौटेंगे... यदि आश्रम में आग लग जाए तो भी हम वापस नहीं लौट सकते। केवल वही लोग इस कूच में भाग ले सकते हैं जिनका अपने सगे- संबंधियों के प्रति कोई विशेष कर्तव्य नहीं है।... हम जीवन-मरण का धर्मयुद्ध करने जा रहे हैं, एक व्यापक यज्ञ करने जा रहे हैं, जिसमें हम अपनी आहुति दे देना चाहते हैं। यदि आप लोग अक्षम सिद्ध होंगे तो लज्जा का भागी मैं होऊंगा, आप लोग नहीं। मुझे भगवान ने जो शक्ति दी है वह आप सब में भी है। आत्मा-मात्र एक है। मेरी आत्मा जागृत हो चुकी है, अन्य लोगों की आंशिक रूप से जागृत हुई है।"

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को    "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक"   (चर्चा अंक-4008)    पर भी होगी। 
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    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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