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Thursday, July 8, 2021

गांधीवाद की छुवन के प्रभाव को जन-जन तक पहुंचाने वाले गिरिराज किशोर

 

आज प्रख्यात साहित्यकार गिरिराज किशोर जी की जन्मतिथि है।



गांधी जी की खुद लिखी आत्मकथा और पुस्तकों के बाद भी यदि उनके बारे में जानने के लिए कोई अपरिहार्य पुस्तक है तो उनमें एक सर्वोपरि स्थान 'पहला गिरमिटिया' का है। एक लेखक के रूप में उनकी अपनी ही पहचान थी और अपनी रचना 'ढ़ाई घर' के लिए वो 'साहित्य अकादमी' से सम्मानित भी हो चुके थे।


शायद दैनंदिन गांधी जी की किसी-न-किसी रूप में वैचारिक हत्या किये जाने की बढ़ती प्रवृत्ति ने उन्हें गांधी जी को अपनी अप्रतिम रचना का विषय बनाने को प्रेरित किया। इस विषय पर लेखन के लिए तथ्यों के संग्रह के जुनून ने उन्हें गांधी जी से जुड़े देश-विदेश के कई स्थानों की अथक यात्रा करवाई। आखिरकार आठ-नौ वर्षों के अथक परिश्रम के पश्चात नौ सौ पृष्ठों का यह दीर्घ उपन्यास हिंदी साहित्य को प्राप्त हुआ और एक धरोहर के रूप में संरक्षित हो गया। 


गांधी जी के भाव किसी को स्पर्श कर दें तो उसका जीवन कैसे प्रभावित हो सकता है, गिरिराज जी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण थे। शायद इन दोनों के मध्य भी कोई 'गिरमिट' हो गया रहा हो!


उपन्यास की रचना प्रक्रिया के दौरान  लेखक शैलेश मटियानी जी ने उनसे कहा था, 'गिरिराज जी, गाँधीजी की लाठी लगने की बात है, अगर छू गई तो उपन्यास पूरा हो जाएगा...!' और शायद यह गांधी जी का दिव्य स्पर्श या अदृश्य चयन रहा हो जिसने इस युग के एक जरुरी कार्य के लिए अपने एक सुपात्र का चयन किया और उसने अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन भी किया। 


गिरिराज जी का काम यहीं नहीं रुका। 'पहला गिरमिटिया' के कथानक को संपूर्णता देने के लिए उन्होंने 'बा' उपन्यास की भी रचना की जो उनके जीवन पर भी गहन शोध पर आधारित था। 


गांधी जी पर दीर्घ शोध के बावजूद वो गांधीवाद के अंध अनुयायी नहीं थे और इसे लेकर उनके कुछ संशय भी थे, जो वो स्पष्ट प्रकट करते भी रहते थे। उनका यह गुण भी तो गांधी जी के प्रिय गुणों में ही था।


गांधी जी के नेताजी के साथ आधारहीन बातें तो खूब फैलाई जाती हैं, पर गिरिराज किशोर जी द्वारा ही उद्धृत एक प्रसंग उनके घरेलू रिश्तों को भी सामने लाता है। 


"सुभाषचंद्र बोस आइसीएस के बाद जब भारत आए तो सबसे पहले वे गांधी जी से मिलने आश्रम गए। 'महानायक' में भी इस घटना का उल्लेख है। सुभाष बाबू चाय पीते थे। आश्रम में चाय प्रतिबंधित थी। बा उन्हें रसोई में बुलाकर चाय पिला देती थीं। एक दिन जब बा चाय दे रही थीं, तो बापू आ गए। वे बोले कि आश्रम में चाय पीने पर प्रतिबंध है। बा ने जवाब दिया कि आश्रमवासियों के लिए है, सुभाष अति‌थि हैं। उन पर प्रतिबंध लागू नहीं होता। बापू कस्तूर की तरफ देखने लगे। कस्तूरबा ने कहा रसोई पर मेरा अधिकार है... बापू चुपचाप चले गए।"


गिरिराज जी कहते थे कि गांधी जी के बारे में बहुत गलत बातें फैलाई जा रही हैं, जिनके प्रति जागरूकता जरूरी है।


उनकी इस बात को आज और भी गंभीरता से लिये जाने की जरूरत है। 

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