पिछले दिनों कुछ ब्लौग्स पर गांधीजी के व्यक्तित्व की तथाकथित विसंगतियों पर काफी चर्चा की गई। गांधीजी का मानना था कि " मूर्खतापूर्ण सुसंगति छोटे दिमागों का हौआ है।"
उन्होंने कहा था - " मैं इस बात की कतई परवाह नहीं करता कि मैं सुसंगत दिखाई दूँ। ... मुझे सिर्फ़ इस बात से सरोकार है कि मैं अपने ईश्वर, अर्थात् सत्य, द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले आदेशों का पालन करने के लिए तत्पर रहूँ।"
अपनी असंगतियों पर दुविधा होने की स्थिति में उनका सुझाव था कि -" यदि किसी को मेरी लिखी किन्ही दो बातों में असंगति दिखाई दे, और फ़िर भी उसे मेरी विवेकशीलता में विश्वास हो, तो उसे उसी विषय पर मेरी बाद की तारीख में लिखी बात को मानना चाहिए।"
ऐसे प्रयोगधर्मी की सोच को स्वीकार करना सहज नहीं मगर उसे समझने की कोशिश तो की ही जा सकती है।
मूर्ख है अभिषेक अंकल सब लोग .गांधी जी को समझने के लिए उनके जैसा होना पड़ेगा .एक अंकल सुबह कह रहे थे ब्लॉग पे के हमें उन औरतो का भी शुक्र गुजार होना चाहिए जिन्होंने गांधी जी के साथ इन प्रयोग में हिस्सा लिया उनका आज़ादी में योगदान कोई समझ नही पाया .हमारी उम्र तो अभी छोटी है अभी नही समझे .जब बड़े हो जायेंगे तब शायद समझ आए .
ReplyDeleteमैं इस बात की कतई परवाह नहीं करता कि मैं सुसंगत दिखाई दूँ। ... मुझे सिर्फ़ इस बात से सरोकार है कि मैं अपने ईश्वर, अर्थात् सत्य, द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले आदेशों का पालन करने के लिए तत्पर रहूँ।"
ReplyDeletethis statement is a landmark for every common man.